
12 मई को बिहार की जिन आठ सीटों पर वोट पड़ेंगे उनमें से चार में राजग को राहत मिलने की संभावना है। यह राहत कैसे और किस हद तक नसीब होगी, बता रही है ‘अपना भारत’ के लिए पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, वाल्मीकिनगर, शिवहर के ग्राउंड जीरो से शिशिर कुमार सिन्हा की रिपोर्ट।’
मोतिहारी: लोकसभा चुनाव के छठवें चरण में 12 मई को बिहार के वैशाली, सीवान, महाराजगंज और गोपालगंज में भी चुनाव है। इन चारों सीटों पर दूर से मिल रहे समाचार लगभग वही हाल बता रहे हैं, जो पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वाल्मीकि नगर और शिवहर के भ्रमण में मिलता है। चारों क्षेत्रों में भ्रमण के बाद मोतिहारी पहुंचते-पहुंचते यह साफ हो जाता है कि जिस तरह की ‘मोदी लहर’ 2014 के लोकसभा चुनाव में थी, वैसी इस बार नहीं है। कहीं न कहीं निर्वाचन आयोग की सख्ती भी इसकी वजह है, ऐसा भी लोग मानते हैं। जमीन पर इसे वाजिब भी कहना गलत नहीं होगा। गिनती के होर्डिंग-बैनर दिखते हैं और प्रचार गाडिय़ां तो कहीं-कहीं ही मिलती हैं। प्रचार में किसी बड़े नेता के आने की खबरें भी अमूमन अखबार से मिलती हैं। पिपरा में पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आकर गए हैं, लेकिन लोग कहते हैं कि यह जानकारी उन्हें अखबारों से ही मिली। मतलब साफ है कि बाहरी तौर पर माहौल बनाने वाले कारक या तो हैं नहीं और जो हैं भी वह प्रभावी नहीं हैं। फिर, लहर! हां, जब मोदी लहर या महागठबंधन की बात आती है तो वोटर्स खुद कहते हैं – ‘अंडर करंट है भाई।’ पूर्वी चंपारण के सांसद केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह ने अपनी सांसद निधि का लगभग शत प्रतिशत खर्च किया है लेकिन इससे वोटर्स को बहुत मतलब नहीं। ज्यादातर को लगता है कि मोदीजी को एक बार फिर मौका दिया जाना चाहिए और रिजल्ट में वही दिखेगा। वैसे देखा जाए तो राधामोहन सिंह के खिलाफ यहां महागठबंधन ने भी बहुत मजबूती नहीं दिखाई है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह के बेटे आकाश सिंह को रालोसपा का टिकट मिला, बेचा गया या समझौता किया गया, क्षेत्र में अभी इसी पर चर्चा चल रही है। रालोसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता माधव आनंद इस सीट से लडऩा चाह रहे थे और पार्टी ने यह सीट मिलने के बावजूद राजनीति में नवागंतुक नेता पुत्र आकाश को टिकट देकर राधामोहन सिंह की राह काफी हद तक आसान कर दी। मोदी के नाम का जो ‘अंडर करंट’ महसूस हो रहा है, उससे ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि इस राउंड की इस हॉट सीट पर बहुत बड़ी लड़ाई नहीं होने जा रही।
रघुवंश प्रसाद सिंह संजय जायसवाल वैद्यनाथ महतो
अंडर करेंट की चर्चा
वैसे, ‘अंडर करंट’ की चर्चा मोतिहारी में ही पहली बार नहीं सुनाई पड़ी। शिवहर बहुत विकसित जिला नहीं है। छोटा तो है ही। केंद्र सरकार की बहुत सारी बातें यहां पहुंच भी नहीं पातीं, फिर भी शिवहर शहर के फस्र्ट टाइम वोटर विकास कुमार कहते हैं, ‘सर, और कुछ हो या नहीं लेकिन पाकिस्तान को हमारे भारत का रुख और रूप दिखाकर मोदीजी ने युवाओं को अपने साथ कर लिया है। कोई प्रचार करे या नहीं, उससे मतलब नहीं। अंदर ही अंदर युवाओं ने मोदीजी को फिर से मौका देने की ठान ली है।’ तो क्या बेरोजगारी, गरीबी जैसे मुद्दों के सामने इतना काफी है? इस सवाल का जवाब विकास के साथ मिले 46 वर्षीय राजेंद्र सिंह ने दिया, ‘दशकों से जिन्हें मौका मिला, वह अब पांच साल का हिसाब मांग रहे हैं। ऐसे तो नहीं चलेगा। पांच साल दिया है, एक मौका और देकर देखना चाहिए कि देश के साथ देशवासियों के लिए क्या-क्या है मोदीजी के पास।’ दरअसल, वोटरों के मन की यह बात सुनते समय प्रत्याशियों पर भी ध्यान जाता है। शिवहर सीट पर महागठबंधन की ओर से राजद प्रत्याशी फैसल अली हैं। फैसल इस छोटे इलाके में भी बड़ी पहचान नहीं रखते, जबकि भाजपा की ओर से पुरानी पॉलीटिशियन रमा देवी को यह सीट मिली है। रमा जनता के मूड को भांप चुकी हैं, क्योंकि वह सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दों के साथ राष्ट्र और राष्ट्रवाद की बातें ज्यादा कर रही हैं।
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मोदी का नाम और काम
सीटिंग एमपी डॉ. संजय जायसवाल पश्चिम चंपारण में सर्जिकल-एयर स्ट्राइक की लहरों के सहारे ही जीत को लेकर निश्चिंत हैं। यहां के आम वोटर्स कहते हैं कि इस सीट पर महागठबंधन की ओर से कांग्रेस को प्रत्याशी देना चाहिए था। कई नाम थे, जो मार्केट में चल भी रहे थे लेकिन सीट रालोसपा को दे दी गई। चनपटिया बाजार में टी स्टॉल पर सुबह-सुबह इसी मुद्दे पर चर्चा चल रही थी। राजू महतो मिले। कहने लगे, ‘जिस पार्टी के सर्वेसर्वा को लोग उसके नाम से नहीं जानते, उस पार्टी को महागठबंधन ने यह सीट दी। लालू प्रसाद खुद कैदी हैं। बेटे आपस में ठीक नहीं नजर आ रहे। महागठबंधन के सारे बिहारी नेता जो सही में बड़े हैं, खुद को भावी मुख्यमंत्री ही मानते हैं। इतनी माथापच्ची पहले से है तो यह सीट कांग्रेस को ही दे देते। भाजपा को यहां कांग्रेस ही टक्कर दे सकती थी। अब तो कोई चांस नहीं लग रहा।’ चांस नहीं मिलने की वजह तो बहुत सारी गिनाते हैं लेकिन यहां बैठे लोग यह भी कहते हैं कि सांसद जायसवाल को पार्टी ने तीसरी बार मौका दिया है और क्षेत्र भी उन्हें यह मौका दे दे। फिर भी उन्हें यह बात जरूर बताई जानी चाहिए कि इस बार उनके काम नहीं, मोदी के नाम पर वोट मिलेगा। इस बार काम से जी न चुराइएगा।
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जदयू को मिला सहारा
सिर्फ भाजपा प्रत्याशी वाली सीटों पर ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन मोदी के भरोसे नहीं है, बल्कि जदयू के खाते में गई वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट पर भी कमोबेश यही स्थिति नजर आती है। यह सीट पिछली बार भाजपा के पास थी। सांसद सतीश चंद्र दुबे कमजोर भी नहीं थे। ऐसे में भाजपा के खाते से जदयू में सीट जाने पर गुस्सा वाजिब रूप से निकल रहा था। जदयू प्रत्याशी बैद्यनाथ महतो भी इस आशंका से उबर नहीं सके तो नमो-नमो करने लगे। जदयू का कैडर उनके साथ था लेकिन भाजपा के कार्यकर्ताओं को जोडऩा बड़ा टास्क नजर आया। महतो को प्रचार और मैनेजमेंट के लिए समय भी ठीकठाक मिल गया। अब जाकर महतो कुछ निश्चिंत हुए हैं कि भाजपा वाले उनके साथ हैं। महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है लेकिन उसके पास भी बड़े नाम वाला प्रत्याशी नहीं था सो, प्रत्याशी के चेहरे की चर्चा करने पर वोटर्स दोनों को बराबर अंक देते नजर आते हैं। हां, एक बार यहां से सांसद रह चुके महतो को बीस मानने में किसी को गुरेज नहीं। जीत-हार की बात शुरू होने पर नरकटियागंज के रामवरण चौधरी, सियाराम सिंह जैसे लोग कहते हैं, ‘इतनी योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने के साथ ही देश का मान बढ़ाने वाले को वोट देना है, न कि किसी स्थानीय नेता या मुद्दे को।’ यानी, घुमा-फिरा कर भी लोग नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट डालने की बात जरूर करते हैं। मतलब, साफ है कि इन चार सीटों में जिस तरह अंडर करंट की बात लोग कहीं न कहीं स्वीकार कर रहे हैं तो राजग का पलड़ा भारी रहना आश्चर्यजनक नहीं होगा।
कविता और हिना
वैशाली-सीवान में टशन, महाराजगंज-गोपालगंज में फिर करंट का भरोसा
छठवें चरण में बिहार की जिन चार अन्य सीटों पर चुनाव होना है, वहां भी मुख्य मुकाबला राजग और महागठबंधन के बीच ही है। वैशाली और सीवान में सबसे कड़ी टक्कर होने वाली है लेकिन अलग-अलग तरह की। वैशाली में राजद के डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह महागठबंधन की ओर से उतरे हैं। उनके सामने हैं लोजपा की वीणा देवी। प्रत्याशी भले ही लोजपा ने दिया है लेकिन ताकत भाजपा ही झोंकती नजर आ रही है। आर्थिक आधार पर अगड़ी जाति को आरक्षण देने का राजद ने विरोध किया था और यहां से राजद में अगड़ी जाति के चेहरे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ भाजपा ने इसे ही मुद्दा बना रखा है। कोई और मुद्दा है तो राष्ट्रवाद का। वीणा देवी भी भाजपाई लहर में ही चल रही हैं। आर्थिक आरक्षण पर रामविलास पासवान ने भाजपा का साथ दिया था, इसलिए लोजपा वाले इसे भी डॉ. रघुवंश सिंह के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं। इधर, सीवान में टशन इस बात का है कि दोनों ही प्रत्याशी महिला हैं और दबंग छवि वाले की पत्नी हैं। राजद ने यहां पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को टिकट दिया है तो जदयू ने बाहुबली अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को अप्रत्याशित रूप से सामने खड़ा कर दिया है। यहां न मोदी मैजिक की बात चल रही है और न ही किसी करंट की। लोग भी कन्फ्यूज हैं कि साथ दें तो किस बाहुबली का। ‘माय’ समीकरण के कारण हिना मजबूत नजर आती हैं, तो राज्य की जदयू सरकार से करीबी होने के कारण कविता भी कम नहीं पड़ रहीं। यह सीट पूरी तरह कन्फ्यूज्ड स्थिति में है। वोटर मतदान के बाद भी यह साफ नहीं होने देंगे कि किस बाहुबली की पत्नी को उन्होंने पसंद किया है।
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जप रहे नमो-नमो
महाराजगंज और गोपालगंज सीट पर एक बार फिर मोदी नाम के करंट के भरोसे सब कुछ है। महाराजगंज लोकसभा सीट पर भाजपा ने जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को फिर मौका दिया है लेकिन वह पहले जितने मजबूत भी नजर नहीं आ रहे। महागठबंधन ने बाहुबली प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह को उतारा है। सिग्रीवाल यहां नमो-नमो का जाप कर रहे हैं, ताकि सीट निकल जाए। दूसरी तरफ महागठबंधन पिछली बार सिग्रीवाल की जीत के कम अंतर को देखते हुए पूरी ताकत झोंक रहा है। सीट भाजपा के पास रहती है या नहीं, यह सिर्फ इसी बात पर निर्भर कर रहा है कि मोदी के नाम का करंट यहां वोटरों को प्रभावित करता है या नहीं। गोपालगंज सीट पर भी कुछ हद तक यही हालत है। भाजपा ने जब अपने सांसद जनक राम को बैठाकर यह सीट जदयू को देने की घोषणा की, तभी से परेशानी नजर आने लगी थी। जदयू प्रत्याशी डॉ. आलोक सुमन राजद के सुरेंद्र राम को कड़ी टक्कर दे रहे लेकिन कहीं न कहीं सुमन को भी मोदी मैजिक के भरोसे ही रहना पड़ सकता है।