डॉ.दिनेश प्रसाद मिश्र
भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास के लिए नदियां अजस्र स्रोत के रूप रूप में आदिकाल से कार्य करती रही हैं। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक की समस्त , न केवल भारतीय सभ्यताएं अपितु विश्व की समस्त सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित हुई है,अस्तित्व में आई है ,जहां तक भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रश्न है उसके अजस्र स्रोत के रूप में नदियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय नदियों में सिंधु ,गंगा ,यमुना ,ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, राप्ती, कृष्णा एवं कावेरी आदि नदियों के तट पर अनेक नगर अस्तित्व में आए तथा विकसित होकर महानगर के रूप में परिणत हो गए, किंतु इन बडी नदियों को जीवन देने वाली अनेकानेक छोटी नदियां जो अपने साथ जल धन की अपार राशि को लाकर इन नदियों में समर्पित करती रही आज न तो उनका कोई नाम लेने वाला है और न ही उनकी ओर किसी का ध्यान है। ऐसी छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। जहां एक और भूगर्भ के जल का असीमित दोहन छोटी नदियों के जीवन को छीनने का प्रयास कर रहा है वहीं दूसरी ओर शासकीय व्यवस्था में हो रहे विकास के परिणामस्वरूप इन छोटी नदियों पर बांध बनाकर तथा बचे हुए जल में जगह जगह चेक डैम बना कर इनका जीवन छीन लिया गया है, छीना जा रहा है। फलस्वरूप देश की अनेकानेक छोटी नदियां लुप्तप्राय हो गई हैं। कल तक वह अपने समीपस्थ क्षेत्र की जीवनदायिनी थी परन्तु आज स्वयं अपने जीवन की रक्षा के लिए दूसरों की ओर हाथ फैलाए हुए जीवन की याचना कर रही हैं किंतु उनकी रक्षा, उनके बचाव हेतु कोई भगीरथ नहीं आ रहा और न ही कहीं से भी किसी भी प्रकार का सहयोग सुरक्षा प्राप्त होते ही दिख रहा है। फलस्वरूप छोटी नदियों का जीवन संकट में है और वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।
इन छोटी नदियों के जीवन संघर्ष की ओर अभी प्रयागराज में आयोजित कुंभ के अवसर पर एक अद्भुत दृश्य ने जन मानस का ध्यान अपनी ओर खींचा जब मुस्लिम युवतियों य का एक समूह 100 छोटी नदियों का जल कलश में लेकर मेला क्षेत्र में उपस्थित हुआ। युवतियों का यह समूह मेला क्षेत्र के काली मार्ग पर स्थित नाले के ऊपर बने हुए अस्थाई पुल पर एकत्रित हुआ जहां जगद्गुरु शंकराचार्य ने आकर इन युवतियों से कलश लिया। इसके बाद वहां उपस्थित सब ने गंगा के साथ छोटी नदियों की रक्षा का संकल्प दोहराया। यह दृश्य नीर और नारी के रिश्ते को समझ कर छोटी नदियों की समस्या एवं उनकी सुरक्षा की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। यहां पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है,कि जिस प्रकार शरीर का तंत्रिका तंत्र पूरे शरीर से जल को एकत्र कर धमनियों को प्रेषित कर जीवन को संचालित करता है, उसी प्रकार से इन छोटी नदियों द्वारा जल की अपार राशि का संग्रह कर तथाकथित बड़ी नदियों को प्रेषित किया जाता है , जिसके बल पर ही तथाकथित बड़ी नदियां विशाल स्वरूप को ग्रहण करती हैं,किंतु छोटी नदियों के समक्ष ही अस्तित्व का संकट उपस्थित हो जाने के कारण विशाल नदियों को भी अपार जल की राशि न मिल पाने से उनके अस्तित्व के समक्ष भी संकट उपस्थित होने जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि देश की अनेक छोटी नदियां जो ग्रामीण जनों के जीवन का आधार होने के कारण उनका कंठ हार बनकर उन्हें जीवन प्रदान करती थी आज समाप्तप्राय हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ऐसी प्रमुख नदियों में हिंडन तथा काली नदी प्रमुख हैं। इसी तरह प्रयागराज की ससुर खदेरी नदी तथा मनसयिता एवं चित्रकूट की गुंता नदी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं। राजस्व रिकार्ड में जहां इन नदियों को नदी के रूप में अंकित किया गया है वहीं पर कहीं-कहीं इन्हें नाला भी कहा गया है।उक्त उल्लिखित काली हिंडन,मनसयिता, ससुर खदेरी एवं गुंता आदि नदियां समाप्तप्राय हैं ,मात्र उनका अस्तित्व ही दिखाई दे रहा है।इन नदियों को जिन्हें नाला कहा जाने लगा है उनमें समीपस्थ गांव का कूड़ा करकट डाला जा रहा है तथा माफिया द्वारा उनकी समीपस्थ भूमि पर कब्जा कर प्लाटिंग की जा रही है ।इतिहास में मनसयिता नदी के तट पर पांडवों के रुकने और ठहरने का जिक्र है। इसी प्रकार हिंडन तथा काली नदी के तट पर अंग्रेजों के साथ स्वतंत्रता संघर्ष में भयंकर युद्ध का जिक्र प्राप्त होता है। यहां पर उक्त छोटी नदियों का नाम उल्लेख तो प्रतीक रूप में किया गया है। आज भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां छोटे जल स्रोत स्थानीय स्तर पर समीपस्थ समाज की जीवनदायिनी इन छोटी नदियों का अस्तित्व समाप्तप्राय न हो ।इन छोटी नदियों के अस्तित्व हीन हो जाने से जहां एक औरआज पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर भूगर्भ का जलभी निरंतर समाप्त होता जा रहा है और बड़ी नदियों को मिलने वाला जल भी अनवरत रूप से प्राप्त न होने के कारण बड़ी नदियों के अस्तित्व के समक्ष भी अस्तित्व का संकट उपस्थित होने जा रहा है।इन्हीं नदियों के बल पर यमुना को विशाल जल राशि प्राप्त होती थी जो यमुना के माध्यम से गंगा को अविरल रूप से प्राप्त होती रही किंतु इन नदियों के समाप्त हो जाने से गंगा को भी अपेक्षित चल राशि की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। फलस्वरूप इन जल स्रोतों को बचाने की बड़ी लड़ाई की भूमिका बननी चाहिए और इसकी कोशिश हर किसी को करनी चाहिए ।किसी न किसी भगीरथ को प्रयास कर इन अस्तित्व खो चुकी नदियों को अपना जीवन अधिकार देकर अस्तित्व में लाना ही चाहिए़। इसी प्रयास में कुंभ क्षेत्र में देसी एवं विदेशी कलाकार उपस्थित होकर छोटी नदियां बचाओ संगठन के बैनर के साथ प्रयास किया गया। भारत सहित देसी विदेशी 9देशोइटली ,फ्रांस ,ऑस्ट्रेलिया ,पोलैंड ,साउथ कोरिया, हॉन्ग कोंग ,नेपाल व भारत के पचास कलाकारों ने छोटी नदियों को बचाने के लिए कलाकृतियां बनाकर लोगों को जागरूक किया ।शिविर में इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजिडेंसी एग्जीबिशन ऑफ रिवर डेमोक्रेसी के अंतर्गत भारत समेत 9 देशों के कलाकार पेंटिंग और कलाकृतियों के माध्यम से छोटी नदियों तालाबों और पर्यावरण को बचाने का संदेश देने में सफल रहे ।कलाकारों की ओर से बनाए गए चित्र नदियों को बचाने और उन्हें गंदा न करने का संदेश दे रहे थे।यूरोप से आए इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजिडेंसी एग्जीबिशन ऑफ रिवर डेमोक्रेसी के निदेशक एके डग्लस के अनुसार देश और विदेश से आए कलाकारों ने छोटी नदियों के अस्तित्व पर आए संकट की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए छोटी-छोटी निष्प्रयोज्य वस्तुओं जैसे पुराने अखबार ,लकड़ियों ,मिट्टी आदि एकत्र कर उनसे कलाकृतियां बनाकर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है।
लुप्तप्राय इन छोटी नदियों को जीवन देने के प्रयास के रूप में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी की ईस्टर्न यूपी रिसर्च एंड वाटर रिजर्वायर्स मॉनिटरिंग कमेटी ने कुशीनगर की हिरण्यवती,कुकुत्था नदी समेत पूर्वांचल की 6 नदियों की सैटेलाइट मैपिंग रिपोर्ट शासन से मांगी है। एनजीटी ने यह कदम दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पूर्वांचल नदी मंच के संयोजक प्रोफेसर राधे मोहन मिश्र के इन नदियों को जीवन देने के प्रयास पर उठाया है। प्रयागराज की ससुर खदेरी नदी को जीवन दान देने के लिए प्रशासन द्वारा प्रयास प्रारंभ कर दिए गए हैं, कभी इलाहाबाद ,कौशांबी एवं फतेहपुर जनपद को अपने जल से आप्लावित करने वाली ससुर खदेरी नदी आज अस्तित्व हीन होकर रह गई है। प्रशासन के प्रयास से लग रहा है कि उसका अस्तित्व शीघ्र ही सामने होगा। उसके प्रवाह पथ की खुदाई करा कर उसे अस्तित्व प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। कुल्लू घाटी की व्यास नदी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भी अभिषेक सिंह के प्रयास से अपेक्षित परिणाम सामने आ रहे हैं और व्यास नदी को बचाने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
भारत का सौभाग्य रहा है उसके पास प्रकृति के अनन्य उपहार के रूप में छोटी बड़ी नदियों का विशाल संजाल विद्यमान है ,जो अपने जल से समस्त भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाने में अनवरत सफल रहा है किंतु आज भूगर्भ के जल के निरंतर दोहन से संकट उत्पन्न हो रहा है और समस्त राष्ट्र के समक्ष जल संकट का भयंकर खतरा सामने है। इसी जल संकट से निपटने और किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आधुनिक भारत में बांध बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया था जिसका प्राथमिक उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण के साथ साथ जल आपूर्ति सुनिश्चित करना था तथा जल विद्युत का उत्पादन और सिंचाई क्षमता बढ़ाना था किंतु उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़ी-बड़ी नदियों पर बांध बनाकर उक्त संकट से निपटने का कार्य प्रारंभ किया गया था किंतु अब बड़ी नदियों के स्थान पर छोटी छोटी नदियों पर भी बांध बनाकर उनके जल प्रवाह को बाधित कर दिया गया है। यदि कहीं थोड़ा बहुत पानी प्रवाहित भी हो रहा है तो उन पर जगह जगह पर चेक डैम बनाकर उनके प्रवाह हो पूर्ण रूपेण बाधित कर दिया गया है। बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में लगभग 40 किलोमीटर के क्षेत्र में प्रवाहित होने वालु गुन्ता नदी अपने जल प्रवाह के मार्ग में पड़ने वाली समस्त भूमि को शस्य श्यामला बनाती हुई प्रकृति के साथ साथ जीव जंतुओं को भी अपने जल से संतुष्टि प्रदान करती थी, अपने सुस्वादु मृदुल जल के कारण वह क्षेत्रीय जनमानस के लिए किसी भी पवित्र नदी से कम न थी। स्थानीय लोग उसके जल की गुणवत्ता के कारण बाढ़ के दिनों में भी मिट्टी मिले हुए जल को घर में रख कर जल के बर्तन में मिट्टी नीचे जमा हो जाने पर उसे छानकर पीते थे तथा संतुष्ट रहते थे किंतु विकास के चक्र के चलने पर समीपवर्ती गांव में नलों के माध्यम से जल की आपूर्ति होने लगी तथा गुन्ता नदी को बांध बनाकर एक निश्चित दायरे में बांध दिया गया,जल बाधित हो गया। यद्यपि इसके बाद भी वह अपने गिने-चुने स्रोतों के माध्यम से प्रवाहित होकर आगे बढ़कर यमुना नदी को अपने जल से आपूरित करना चाहती है किंतु विकास के नाम पर शासन व्यवस्था ने स्थान स्थान पर चक डैम बनाकर उसकी गति को पूर्ण रूपेण बाधित कर दिया।फलस्वरूप वह अब समाप्ति के कगार पर है। उसके तट पर समीपवर्ती गांव के लोग जो कभी उसके जल से संतुष्टि प्राप्त कर उससे अपना अपनापन मानते हुए समय समय पर उसकी पूजा करते थे तथा उसे अपना मानते थे ,अब वह उनके लिए पराई हो गई तथा उसका प्रवाह पथ बांध एवं चक डैम से बाधित हो कर पूर्ण रूपेण जलशून्य हो गया है ।भविष्य में लोगों के लिए उक्त नदियों की स्थिति मात्र कहानी किस्सों की बात बन कर रह जाएगी। इसी प्रकार ही उरई में स्थित नून नदी अपनी अंतिम अवस्था में हैं ,उसका जल प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो चुका है ।जल प्रवाह के स्थान पर काले गंदे पानी से युक्त गंदा नाला प्रवहमान दर्शित होता है। तीन दशक पूर्व वह पूर्णरूपेण जल प्लावित नदी थी तथा अपने जल से जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करती थी, बांध के निर्माण तथा रेत के वैध अवैध खनन के लिए सरकारी कागजों में शासन व्यवस्था उसे नदी अवश्य मानती है,लेकिन जैसे ही उसके संरक्षण संवर्धन के लिए उसके प्रदूषित होने का जिक्र कर उसे प्रदूषण मुक्त कर नव जीवन प्रदान करने की बात होती है तो उसकी भूमि पर कब्जा जमाए बैठे भू माफिया तथा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रेत खनन के वैध अवैध व्यवसाई गण उसे बरसाती नाला बताने से नहीं चूकते ।आज वह अपने दूषित जल से यमुना को जहर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह अलग तथ्य है की नदी के रूप में अपने मृदुल जल से युक्त होने पर समीपवर्ती गांव के किनारे से गुजरते हुए वह उनका सहारा हुआ करती थी।वह क्षेत्र भूगर्भ जल की दृष्टि से डार्क जोन की श्रेणी में आता है। जालौन जिले के लगभग 101 गांव पूर्ण रूपेण नून नदी के जल मेंही निर्भर थे ,यह उनके लिए जीवनदायिनी थी किंतु उसके अस्तित्व समाप्त होने से संबंधित गांवों में पानी की विकराल समस्या मुंह बाए खड़ी है। विचित्र स्थिति यह है कि जो नदी कभी क्षेत्रीय जनता के लिए जीवनदायिनी थी । वह आज गंदा नाला बन कर सामान्य जनजीवन के समक्ष समस्या उत्पन्न कर रही है। साथ ही स्वयं के जीवन के लिए भी एक समस्या बन गई है किंतु इस समस्या के निदान का प्रयास किसी के द्वारा नहीं किया जा रहा है। सामान्य समाज इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहा है ।छोटी छोटी नदियों को उनके अपने अस्तित्व के लिए राम भरोसे छोड़ दिया गया है ,जिससे वह स्वयं तो समाप्ति के कगार पर हैं ही साथ ही उनके द्वारा बड़ी नदियों को जल की आपूर्ति न हो पाने के कारण बड़ी नदियों के समक्ष भी समस्या मुंह बाए खड़ी है। फलस्वरूप छोटी छोटी नदियां जो कभी अपने साथ जल की अपार राशि लेकर ग्रामीण समाज को अपने बलबूते पर जल सुविधा प्रदान कर उन्हें पीने के पानी के साथ साथ सिंचाई के भी पर्याप्त साधन उपलब्ध कराते हुए उपजाऊ मिट्टी प्रदान कर आर्थिक रूप से समृद्ध करती थी आज स्वयं समाप्त हो रहीहैं।
दुर्भाग्य do do xसे भारत के नीति नियंताओं ने प्रकृति के स्रोतों का निरंतर दोहन कर उन्हें पूर्ण रूप से समाप्त करने का ही निरंतर प्रयास किया है ,उनके संरक्षण संवर्धन के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। फलस्वरूप प्रकृति के यह स्रोत निरंतर समाप्त हो रहे हैं ।आज उन्हें संरक्षण एवं संवर्धन हेतु शासकीय एवं सामाजिक सहयोग की अपेक्षा है ,किंतु जैसे सहयोग एवं संरक्षण की अपेक्षा , आवश्यकता है वैसा व्यापक संरक्षण एवं सहयोग कहीं से प्राप्त होता दिख नहीं रहा। प्रकृति के स्रोतों को बनाए रखने के लिए छिटपुट प्रयास तो देखे जा रहे हैं किंतु शासकीय व्यापक प्रयास न किए जाने से उनका परिणाम सामने नहीं आ रहा है। छोटी छोटी नदियों पर , सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के नाम पर बांध बनाने का कार्य व्यापक रूप से तो किया जा रहा है किंतु छोटी नदियों को प्रवहमान बनाए रखने के लिए उनमें निर्धारित स्तर पर जल प्रवाहित किए जाते रहनेकी मात्रा को निश्चित कर उसको सुनिश्चित करने की कोई योजना अब तक नहीं बनाई गई है ।फलस्वरूप छोटी नदियों का पूरा का पूरा जल बांध कर उन्हें प्रवाहित होने से रोक दिया जा रहा है और वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं ,जिसमें उन्हें शासन या सामाजिक रूप से कहीं से भी कोई समर्थन नहीं मिल रहा और वह मृतप्राय होकर रह गई हैं, जबकि उनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता को देखते हुए उनका नित्य प्रवहमान रहना सामाजिक सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक दृष्टिकोण से आवश्यक है । नदी के जल से आपूरित होकर भूगर्भ का जल जो कभी भूतल के समीप रहता था, अब निरंतर नीचे जा रहा है, जिसके कारण आने वाले दिनों में, निकट भविष्य में शीघ्र ही भयंकर जल की समस्या उत्पन्न होगी ,जिस का निदान कर पाना बहुत आसान न होगा। उसके लिए छोटी नदियों को गति एवं जीवन प्रदान करना आवश्यक होगा, जिसे देखते हुए शासन व्यवस्था को इस दिशा में कार्य करना चाहिए किंतु ऐसा होते हुए दिख नहीं रहा। जल ही जीवन है को चरितार्थ कर तथा उसके निहितार्थ को समझकर जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को जीवन प्रदान करने वाली छोटी छोटी नदियों को सुरक्षा संवर्धन एवं प्रदूषण से संरक्षण ही उनको जीवन प्रदान कर सकता है। हिंदू धार्मिक त्योहारों गंगा दशहरा ,कार्तिक पूर्णिमा आदि के अवसर पर जनमानस छोटी छोटी नदियों से लेकर बड़ी-बड़ी नदियों तथा स्थानीय तालाबों जलाशयों तक को महत्व प्रदान कर ,उनमें स्नान कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं किंतु यह भावना व्यक्तिपरक तथा मात्र एक दिन के लिए होती है ,जबकि आवश्यकता है कि यह भावना व्यक्तिपरक होने के स्थान पर समाजपरक हो तथा शासन व्यवस्था बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों के संरक्षण संवर्धन एवं उनके प्रदूषण मुक्त होने को सुनिश्चित करने का दायित्व स्वयं निभाये,तभी यह नदियां बचेगी तथा धरती में जल होगा और उससे जीवन भी सुरक्षित बना रहेगा अन्यथा समाप्त होती जा रही छोटी छोटी नदियां धरती से समाप्त हो रहे जल की सूचना प्रदान कर आगे आने वाले जीवन के समक्ष उपस्थित होने वाले संकट की चेतावनी भी दे रही हैं,जिसका समय रहते निदान खोजना आवश्यक है और यह निदान किसी भी रूप में येन केन प्रकारेण छोटी छोटी नदियों को तात्कालिक लाभ की दृष्टि से बांध देने ,मार देने के स्थान पर उन्हें अनवरत अपने गंतव्य पथ पर जाने हेतु प्रवाहित होने देने तथा उसकी व्यवस्था कर उसे सुनिश्चित करने से ही संभव है अन्यथा समक्ष विकराल स्थिति है, जिसका सामना कर पाना अत्यंत कठिन होगा।
डॉ.दिनेश प्रसाद मिश्र
198 / 71-ए ,निराला -निकेतन,टैगोर टाउन
प्रयागराज 211006