
आदिवासी संगठनों का भारत बंद आज, कई संगठनों ने किया समर्थन
नई दिल्ली: देश के कई राज्यों में आज आदिवासी समूहों ने भारत बंद का आह्वान किया है। सुप्रीम कोर्ट के आदिवासियों और वनवासियों को उनके आवास से बेदखल करने के फैसले से राहत देने के हालिया आदेश के बावजूद आदिवासी समूहों ने मंगलवार को भारत बंद के फैसले पर कायम रहने का निर्णय किया है। आदिवासी इस राहत को फौरी मान रहे हैं और उनका मानना है कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उचित कानून की गैरमौजूदगी में इसे कभी भी पलट दिया जाएगा।
नीतीश जी पिछड़ों और पासवान जी दलितों के नाम पर कलंकित राजनीति कर रहे है। BJP ने विश्वविद्यालयों में वंचितो का आरक्षण समाप्त कर दिया।जातिगत जनगणना के आँकड़े छिपा लिए। निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू नहीं किया। और ये दोनों जातिवादी संगठन RSS का कीर्तन कर रहे है।#5MarchBharatBandh
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) March 4, 2019
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राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी ट्वीट कर इसका समर्थन किया है। लालू यादव ने ट्वीट कर कहा कि देश में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। आदिवासियों की जमीनें छीनी जा रही हैं। संविधान के साथ छेड़छाड़ कर वंचित वर्गों का आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। दलितों पर उत्पीड़न बढ़ गया है।
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वहीं दूसरी तररफ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिन) ने आरक्षण और संविधान पर मोदी सरकार के हमलों के खिलाफ सामाजिक संगठनों के 5 मार्च को भारत बंद के आह्वान का समर्थन किया है।
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आदिवासी समूह की मांग
आदिवासी समूह यह मांग का रहे हैं कि केंद्र उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए अध्यादेश लाए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी भारत बंद का समर्थन करेंगे।
बता दें कि भारत बंद की प्रमुख मांगों में उच्च शिक्षण संस्थानों की नियुक्तियों में 13 प्वाइंट रोस्टर की जगह 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करने।
शैक्षणिक व सामाजिक रूप से भेदभाव वंचना व बहिष्करण का सामना नहीं करने वाले सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रद्द करने।
आरक्षण की अवधारणा बदलकर संविधान पर हमले बंद करने।
देश भर में 24 लाख खाली पदों को भरने।
लगभग 20 लाख आदिवासी परिवारों को वनभूमि से बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरी तरह निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाने।
पिछले साल 2 अप्रैल के भारत बंद के दौरान बंद समर्थकों पर दर्ज मुकदमे व रासुका हटा कर उन्हें रिहा करने आदि मांगें शामिल हैं।