आश्रय स्थल में ही आसरा नहीं तो फिर आसरा कहाँ साहेब

Published on August 21, 2018 by   ·   No Comments

– डॉ नीलम महेंद्र –

ये कैसी तरक्की है यह कैसा विकास है
जहाँ इंसानियत हो रही हर घड़ी शर्मसार है,?
ये कैसा दौर है ये कैसा शहर है
जहाँ बेटियों पर भी बुरी नजर है?
ये कौन सी सभ्यता है ये कौन सी संस्कृति है कि
जहाँ एक पुरूष का मानव शरीर में जन्म लेना मात्र ही मानव होने की पहचान शेष है?
और एक महिला के लिए स्त्री शरीर के साथ जन्म लेने मात्र ही उसका दोष है?

अब तक जो बलात्कार के मामले सामने आते थे उनमें कोई व्यक्ति अकेला या अपने दोस्तों के साथ कभी नशे में तो कभी आवेश में ऐसी घटनाओं को अंजाम देता था। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार होते हैं और उनके व्यक्तित्व के विकास पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता इस लिए वे इस प्रकार का आचरण करते हैं। लेकिन आप उन पढ़े लिखे और तथाकथित सभ्य सफेदपोशों के लिए क्या कहना चाहेंगे जिन्होंने मुजफ्फरपुर में 40 नाबालिग और बेसहारा लड़कियों के साथ उस छोटी और मासूम उम्र में दरिंदगी की सभी हदें पार कर दीं? इंतहा की हद तो यह थी कि वे अपने इस काम को अंजाम बच्चियों के ही नाम पर खोले गए एक शेल्टर होम  “सेवा संकल्प एवं विकास समिति” में करते थे। अब इसमें किसकी सेवा की जाती थी और किसके विकास का संकल्प पूरा किया जा रहा था यह सबके सामने है। लेकिन इसका सबसे शर्मनाक पहलू यह था कि इसके लिए उन्हें सरकार से लाखों रुपए भी दिए जाते थे। इस शेल्टर होम को एक अखबार के मालिक चलाते थे और इसमें सरकार की ही एक मंत्री के पति का भी आना जाना था। इस आश्रय स्थल में मात्र 10 वर्ष की बच्चियों के साथ भी कैसा सुलूक किया जाता था इस पर अखबारों और न्यूज चैनलों पर काफी कुछ बताया और दिखाया जा चुका है।
लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं होती। इस देश का एक गर्ल्स शेल्टर होम ऐसा भी है जो अवैध तौर पर चलाया जा रहा था। जी हाँ देवरिया के इस तथाकथित “नारी संरक्षण गृह” को पहले ही बंद कराने का आदेश दिया जा चुका था। सरकार द्वारा इसे चलाने वाली संस्था की मान्यता 2017 में समाप्त कर दी गई थी एवं जिला प्रशासन को इस संस्था को बंद करने और बच्चों को अन्य संस्थाओं में ले जाने का आदेश देने के बावजूद यह अब तक “चलाया” जा रहा था और “नारी संरक्षण” के नाम पर इसमें क्या क्या हो रहा था,  कैसे उनके शोषण की  सारी हदें ही पार हो रही थीं, पूरे देश ने देखा। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस संस्था के सफेदपोश भी इस संरक्षण गृह के नाम पर सरकार से एक मोटी रकम वसूलते थे। अबोध बच्चियों और बेसहारा महिलाओं के साथ उनके संरक्षण के नाम पर होने वाला शोषण यहीं नहीं थमता। शारीरिक रूप से असक्षम बच्चियों को भी इस तथाकथित सभ्य एवं शिक्षित समाज में इन तथाकथित सफेदपोशों द्वारा बक्शा नहीं जाता।
भोपाल के एक छात्रावास में मूक बधिर बच्चियों के साथ संचालक द्वारा बलात्कार करने का मामला भी सामने आया है। इस होस्टल का संचालक मूक बधिर बच्चियों के लिए एक प्रशिक्षण गृह चलाता था जिसके लिए वह सरकार से अच्छी खासी राशी प्राप्त करता था। लेकिन इस सबसे इतर इन सभी मामलों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सभी नारी संरक्षण गृहों में महिलाओं अथवा बच्चियों की देखरेख एक महिला के हाथ ही होती है उसके बावजूद इस प्रकार की घटनाओं का होना क्या केवल  शर्मनाक है या फिर संवेदनहीनता की पराकाष्टा है?
हमारा समाज आज किस मोड़ पर खड़ा है जहाँ महिलाओं और बच्चियों को सहारा देने के नाम पर उनका शोषण किया जाता है? ये कैसी मानसिकता जिसमें लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर सरकार से धन प्राप्त करके उसका उपयोग उन्हीं के खिलाफ किया जाता है और उनकी आत्मा उन्हें धिक्कारती नहीं है?
ये कौन से लोग हैं जो एक सिंडीकेट बना कर काम करते हैं? क्या ये संभव है कि सालों से हो रहे इन कारनामों की सरकार और उसके अफसरों को इन बातों की जानकारी नहीं थी वो भी तब जब इनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सरकार के मंत्री  और पार्टी के पदाधिकारी तक शामिल होते थे? इतना ही नहीं इन्हें  समाज कल्याण में इनके योगदान के लिए तमाम सरकारी और गैर सरकारी पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जा चुका था?
तो इस दौर में जब कभी कोई मनचला कभी अकेला तो कभी अपने दोस्तों के साथ नशे में या होश में हमारी ही किसी बेटी की आबरू लूटता है। या फिर बड़े बड़े रसूख वाले लोग अपने निजी स्वार्थों को हासिल करने के लिए हमारी ही इन बच्चियों के सामने उनके रक्षक बनकर पूरे होशोहवास में फूल प्रूफ प्लानिंग के साथ उनकी जिंदगी ही बरबाद नहीं करते, उनकी मासूमियत रौंद लेते हैं उनके सपने तोड़ देते हैं उनकी मुस्कुराहट छीन लेते हैं उनके शरीर ही नहीं उनकी आत्मा भी जख्मों से भर देते हैं, और सबसे बड़ी बात, उनका इंसान ही नहीं ईश्वर पर से भी भरोसा उठा देते हैं तो क्या ऐसी खबरें पढ़ कर हम एक समाज के रूप में शर्मिंदा होते हैं? अगर होते हैं तो यह समय कुछ कहने का नहीं करने का है। जी हाँ, यह समय है हम सभी के लिए “आत्ममंथ करने का” एक समाज के रूप में कि क्या हम वाकई में स्वयं को एक सभ्य शिक्षित और विकसित समाज कहलाने के हकदार हैं? गर नहीं, तो यह समय है अपने खोते जा रहे नैतिक मूल्यों को पुनः हासिल करने का, मृत होती संवेदनाओं को पुनः जीवित करने का,दम तोड़ती मानवता को पुनः जागृत करने का। और आखिर में हम पाएंगे कि यह समय है एक बहुत ही महत्वपूर्ण संघर्ष का,  “मनुष्य के भीतर मरते जा रहे मनुष्य को जीवित रखने के संघर्ष का।”

_______________

डाँ नीलम महेंद्र

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

समाज में घटित होने वाली घटनाएँ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।भारतीय समाज में उसकी संस्कृति के प्रति खोते आकर्षण को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहती हूँ। हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं यह देश हमारा है हम ही इसके भी निर्माता हैं क्यों इंतजार करें किसी और के आने का देश बदलना है तो पहला कदम हमीं को उठाना है समाज में एक सकारात्मकता लाने का उद्देश्य लेखन की प्रेरणा है।

राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा औनलाइन पोर्टल पर लेखों का प्रकाशन फेसबुक पर ” यूँ ही दिल से ” नामक पेज व इसी नाम का ब्लॉग, जागरण ब्लॉग द्वारा दो बार बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड

संपर्क – : drneelammahendra@hotmail.com  & drneelammahendra@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.