उपराज्‍यपाल को स्‍वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं: SC, केजरीवाल बोले- ये लोकतंत्र की जीत

उच्‍चतम न्‍यायालयने कहा–उपराज्‍यपाल को स्‍वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं। उन्‍हें मंत्रिपरिषदकी सहायता और सलाह से काम करना होता है।

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प्रदीप शर्मा

नई दिल्ली: दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच जारी अधिकारों की जंग को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया है. उच्‍चतम न्‍यायालयने व्‍यवस्‍था दी है कि उपराज्‍यपाल को स्‍वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं है और उन्‍हें मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार काम करना होता है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने उपराज्‍यपाल कोराष्‍ट्रीय राजधानी का प्रशासनिक प्रमुख बताने वाले दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के आदेश कोचुनौती देने वाली दिल्‍ली सरकार की अपीलों पर सुनवाई के दौरानये फैसला दिया।

प्रधान न्‍यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्‍यक्षता वाली पांच न्‍यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसलासुनाते हुए कहा कि उपराज्‍यपाल बाधा डालने की भूमिका भी नहींनिभा सकते। दो अन्‍य न्‍यायाधीशों न्‍यायमूर्ति ए के सिकरी और न्‍यायमूर्ति ए एम खानविलकरने भी इस पर अपनी सहमति व्‍यक्‍त की। फैसलेके अनुसार मंत्रिपरिषद के सभी निर्णय उपराज्‍यपाल को भेजे जानेचाहिए, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उन पर उपराज्‍यपाल की सहमति जरूरी है।

उच्‍चतम न्‍यायालयने कहा कि जमीन तथा कानून और व्‍यवस्‍थासहित तीन विषयों को छोड़कर दिल्‍ली सरकार को अन्‍य सभी मामलों में कानून बनाने और व्‍यवस्‍था चलाने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘’कुछ मामलों को छोड़कर दिल्ली विधानसभा बाकी मसलों पर कानून बना सकती है. संसद का बनाया कानून सर्वोच्च है. एलजी दिल्ली कैबिनेट की सलाह और सहायता से काम करें.’’ इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा है कि एलजी को दिल्ली सरकार के काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए. हर काम में एलजी की सहमति अनिवार्य नहीं है.’’

हालांकि, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, इसलिए यहां के राज्यपाल के अधिकार दूसरे राज्यों के गवर्नर से अलग है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘’दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है. इसलिए यहां बाकी राज्यपालों से अलग स्थिति है.’’ कोर्ट ने कहा है कि अगर एलजी को दिल्ली कैबिनेट की राय मंजूर न हो तो वह सीथे राष्ट्रपति के पास मामला भेज सकते हैं. शक्तियों में समन्वय होना चाहिए. शक्तियां एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती.’’

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है, ‘’लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं. जनता के प्रति जवाबदेही सरकार की होनी चाहिए. संघीय ढांचे में राज्यों को भी स्वतंत्रता मिली हुई है. जनमत का महत्व बड़ा है. इसलिए तकनीकी पहलुओं में उलझाया नहीं जा सकता.’’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जनता और लोकतंत्र की जीत बताया है. केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा है, ‘’दिल्ली के लोगों की बड़ी जीत, लोकतंत्र के लिए भी ये बड़ी जीत है.’’

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ”सुप्रीम कोर्ट को तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिसने दिल्ली की जनता को सुप्रीम बताया है. अब एलजी के पास मनमानी का पावर नहीं. अब चुनी हुई सरकार को दिल्ली के काम के लिए अपनी फाइलें एलजी के पास भेजने की जरुरी नहीं. अब ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार भी दिल्ली सरकार के पास है. ये लोकतंत्र की बड़ी जीत है.”
बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी ने फैसले का स्वागत किया है. उनका तर्क है कि कोर्ट ने सीएम और उप-राज्यपाल को संविधान सम्मत होना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज नहीं देने की बात कह कर सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को आईना दिखाया है. दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष ने आगे कहा कि केजरीवाल संविधान को नहीं मानते और सुप्रीम कोर्ट ने अराजक शब्द का इस्तेमाल करके केजरीवाल के गाल पर तमाचा मारा है.