एक तरफ हंगामा तो दूसरी तरफ मूक सहमति, संसद नहीं चलेगी

संसद का बजट सत्र का दूसरा चरण पूरी तरह से हंगामे की भेंट चढ़ने के आसार, विधायी कार्य शोरगुल के बीच ही निपटाए गए

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एक तरफ हंगामा तो दूसरी तरफ मूक सहमति, संसद नहीं चलेगी

प्रतीकात्मक फोटो.

खास बातें

  1. नीरव मोदी और बैंक घोटालों को लेकर चलता रहा हंगामा
  2. सरकार की विपक्ष को भरोसे में लेने के बजाय हंगामे पर विराम की कोशिश
  3. कई सांसदों ने अपने क्षेत्रों में लौटने का कार्यक्रम बनाया
नई दिल्ली: संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण पूरी तरह से हंगामे की भेंट चढ़ता नज़र आ रहा है. सरकार ने फाइनेंस बिल जैसी ज़रूरी और संवैधानिक तौर पर अनिवार्य विधायी कार्यों को बुधवार को शोरगुल के बीच ही निपटाया. विपक्ष ने इस तरीक़े को गुलेटाइन बताते हुए इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया.

विपक्षी पार्टियों में जहां कांग्रेस और टीएमसी जैसी पार्टियों ने सबसे अधिक तूल नीरव मोदी और बैंक घोटालों को दिया वहीं सत्ता में सहयोगी रही टीडीपी ने आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर सरकार को घेरे रखा. नतीजा हर दिन सुबह ग्यारह बजे लोकसभा शुरू होते ही स्थगित होती रही है. दोपहर बारह बजे फिर कार्यवाही शुरू भी हुई तो वही हाल रहा. पूरे दिन के लिए स्थगित होती रही.

विपक्ष नियम 167 के तहत बहस की मांग पर अड़ा रहा. सरकार 193 के तहत बहस की बात करती रही. लेकिन कोई सहमति नहीं बन पाई. विपक्ष का आरोप ये भी है कि सरकार ने उन तक रीच आउट करने की कोशिश तक नहीं की. जबकि सरकार को लगता रहा है कि विपक्ष को मनाना मुश्किल है इसलिए वह अपील तो करती रही और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अनौपचारिक बैठक कर मेलमिलाप की कोशिश नहीं हुई.

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बजट सत्र के इस चरण में लगातार ये लगता रहा है कि सरकार और विपक्ष में अगर कोई आपसी समझ बनी है तो बस इस बात की कि सदन नहीं चलेगा. पांच मार्च से शुरू हुए इस चरण में हर कार्यदिवस पर सांसदों की महज़ हाजिरी लगती रही. संसद के भीतर और बाहर गांधी मूर्ति के सामने विरोध प्रदर्शनों के दो ठिकाने नज़र आए.

अब कहा ये भी जा रहा है कि हो न हो कहीं गुरुवार को संसद को आगे मिलने के लिए स्थगित कर दिया जाए. कुछ विपक्षी सांसद इस बात की भनक इसमें देखते हैं कि सरकार ने किस तरह से बुधवार को तमाम ज़रूरी विधायी कामकाज़ निपटाए हैं. उनको लगता है कि सरकार विपक्ष का भरोसा हासिल कर आगे बढ़ने की बजाय अब इस हंगामे को यहीं विराम देना चाहती है. जब कोई काम नहीं ही हो रहा है तो फिर संसद चलाते रहने का कोई औचित्य नहीं. शायद इसी तर्क को तवज्जो मिले.

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VIDEO : विपक्ष की सुनवाई नहीं हो रही

इस बात की संभावना को देखते हुए तो कई सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्रों में लौटने का कार्यक्रम भी बना लिया है और वापसी का हवाई जहाज़ का टिकट भी ले लिया है. 2019 बहुत दूर नहीं है, ऐसे में संसद में न सही वे अपने क्षेत्र में लौटकर काम करते दिखना चाहते हैं.


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