शुरुआत में हो बहरेपन की पहचान तो उपचार आसान : विशेषज्ञ
खास बातें
दुनियाभर में लगभग 36 करोड़ लोग सुन नहीं सकते
भारत में 50 लाख से ज्यादा आबादी बहरेपन की समस्या
विश्व की करीब 5 फीसदी आबादी सुनने से लाचार
नई दिल्ली: देश में हर साल पैदा होने वाले 27,000 से अधिक शिशुओं में बहरेपन की शिकायत रहती है, जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है. लेकिन इनकी पहचान अगर शुरुआत में हो जाए तो इलाज आसान हो जाता है, ये कहना है गंगाराम अस्पताल के कॉक्लीयर इंप्लांट कंसल्टेंट डॉ. शलभ शर्मा का. आगे उन्होंने बताया कि युनिवर्सल न्यूबोर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यूएनएसएस) से नवजात शिशुओं में श्रवण शक्ति की पहचान आसानी से की जा सकती है. बस इसके लिए माता-पिता को जागरूक करने की जरूरत है.
अस्पताल के ईएनटी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ए.के. लाहिड़ी ने कहा, " माता-पिता व परिजनों को किसी श्रवण शक्ति कम होने से संबंधित तकलीफों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कोक्लियर इंप्लांट एक व्यक्ति को खामोशी से आवाज की दुनिया में ले जाता है. यह जीवन को बदलने वाला क्षण है. कई विकसित देशों में हर नवजात शिशु के लिए हियरिंग स्क्रीनिंग कराई जाती है. भारत को भी यूनिवर्सल न्यू बॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने पर विचार करना चाहिए."
चिकित्सकों ने बताया कि दुनियाभर में लगभग 36 करोड़ लोग सुन नहीं सकते. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 50 लाख से ज्यादा आबादी बहरेपन की समस्या से पीड़ित है. विश्व की करीब 5 फीसदी आबादी सुनने से लाचार है.
डॉ. शलभ शर्मा ने कहा, " देश में सुनने से लाचार नौजवानों की बड़ी आबादी है जिससे उनकी शारीरिक और आर्थिक सेहत पर भी असर पड़ता है."
डॉ. आशा अग्रवाल ने कहा कि समय से रोग की पहचान और बहरेपन का इलाज जरुरी है. अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में मिली उचित सहायता से बच्चा अपनी कमी से उबरकर तेजी से बोलना और बातचीत करना सीख सकता है. इससे उसे समाज की मुख्य धारा का अंग बनने का भी मौका मिलता है.