मध्यप्रदेश में सत्ता का 'सेमीफाइनल' और कांग्रेस की जीत के मायने
यह था तो उपचुनाव ही, लेकिन कालखंड ने इसे बेहद दिलचस्प बना दिया. कोलारस और मुंगावली की यह विधानसभा सीटें शायद ही इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण बनी होंगी जितनी कि इस उपचुनाव में बनीं.
446 Shares
ईमेल करें
टिप्पणियां
प्रतिष्ठा का सवाल बने इन उपचुनावों के लिए शिवराज सिंह चौहान ने 40 से ज्यादा रैली की थीं (फाइल फोटो)
यह था तो उपचुनाव ही, लेकिन कालखंड ने इसे बेहद दिलचस्प बना दिया. कोलारस और मुंगावली की यह विधानसभा सीटें शायद ही इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण बनी होंगी जितनी कि इस उपचुनाव में बनीं. लगातार तीन विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विजयी पताका फहरा रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए इसे सबसे ज्यादा अहम बताया जा रहा था तो सत्ता से दूर बैठी कांग्रेस इसके जरिए अपने लिए भरपूर 'ऑक्सीजन' की तलाश कर रही थी. इससे पहले कांग्रेस ने चित्रकूट का उपचुनाव भी जीता था. यह जीत कांग्रेस के साथ ही सिंधिया के गढ़ में ज्योतिरादित्य को मजबूती दे गई. इन परिणामों के आधार पर अब मध्यप्रदेश में चुनावी चौसर की रणनीति तय होने वाली है. जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सवालों का सही जवाब खोज रहे होंगे, वहीं अभी तक आगामी विधानसभा चुनाव के लिए किसी भी एक चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं करने वाली कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी बढ़ जाएगी.
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश की कोलारस विधानसभा के कांग्रेस विधायक राम सिंह यादव का पिछले साल अक्टूबर में और मुंगावली विधायक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा का सितंबर को निधन हो गया था. इन दोनों सीटों पर उपचुनाव कराया गया. सिधिया के लोकसभा क्षेत्र में आने वाली मुंगावली विधानसभा में 2.45 लाख मतदाता हैं जबकि कोलारस में मतदाताओं की संख्या 1.90 लाख है. 24 फरवरी को हुए मतदान में कोलारस में 70.40 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था, 2013 में ये आंकड़ा 72.82 था. मुंगावली में 77.05 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे.
प्रतिष्ठा का सवाल बनी इस सीट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद 40 से ज्यादा रैलियों में खुद को झोंका. क्षेत्र में रात्रि विश्राम किया. शिवराज गांव में चौपाल लगाकर लोगों के साथ बैठे, करीब जाकर हाथ मिलाया. सिर्फ शिवराज ही नहीं, उनकी पूरी कैबिनेट और सरकार में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने भी यहां पर पूरी ताकत लगाई. उधर, कांग्रेस की ओर से मोर्चा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संभाला. उन्होंने इन दोनों सीटों पर 75 से ज्यादा रैलियां कीं. भाजपा ने कोलारस से देवेंद्र जैन और मुंगावली से बाई साहब यादव को टिकट देकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया था. उनके खिलाफ कांग्रेस ने मुंगावली से ब्रजेन्द्र सिंह यादव और कोलारस से महेन्द्र सिंह यादव को खड़ा किया था. चुनाव परिणाम बेहद रोमांचक रहा और EVM से मतदान के बावजूद चुनाव परिणाम जानने के लिए देर शाम तक का इंतजार करना पड़ा।.आजकल नतीजे दोपहर होने तक आ ही जाते हैं, ऐसे में लोगों में यह सवाल घूमता रहा कि आखिर परिणाम घोषित करने में देरी क्यों हो रही है.
तीन चुनाव यानी तकरीबन 15 साल का वक्त. पूर्ण बहुमत और स्थायी नेतृत्व. इसके बावजूद बीजेपी के पास तुलना करने के लिए 2003 का वह साल है जब दिग्विजय सिंह की सरकार बिजली और सड़क के मुद्दे पर निपट गई थी. बुधवार को जब विधानसभा में राज्य के वित्त मंत्री जयंत मलैया इस सरकार का अपना अंतिम बजट प्रस्तुत कर रहे थे तो उनके पास अपनी उपलब्धि का तुलनात्मक साल 2003 ही था. इतने सालों में आंकड़े बदलते ही हैं चाहे किसी की भी सरकार हो.
मध्यप्रदेश में पिछले चुनाव शिवराज सिंह चौहान अपनी लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना और ऐसी जनता से जुड़ी कई योजनाओं के जरिए निकालने में सफल रहे थे. इस कार्यकाल में उनके पास ऐसी योजनाएं तो हैं, लेकिन उनका जमीनी क्रियान्वयन और लोगों को पेश आने वाली दिक्कतों से लोग नाराज हैं. मसलन भावांतर योजना को इस साल की सबसे बड़ी योजना बताया जा रहा है, पर जमीनी सच्चाई यह है कि लोगों को इसका भुगतान देरी से मिल रहा है. किसानों को दो सौ रुपए का समर्थन मूल्य भी दिया तो चुनावी साल में, इसके साथ ही पिछले साल का बोनस देने की घोषणा को अच्छी मंशा की जगह लोगों ने चुनावी चारा अधिक माना है, यह घोषणा यदि वह पिछले साल ही कर देते या हर साल सौ-सौ रुपए का बोनस किसानों को देते तो उनकी छवि किसानप्रिय नेता की बनी रहती.
शिवराज सिंह चौहान ही मैदान में
मध्यप्रदेश में अब चुनावी चौसर बेहद दिलचस्प होने वाली है. शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से अपना झंडा बुलंद किए हुए हैं. यदि वह शीर्ष नेतृत्व को कोलारस और मुंगावली का ठीक-ठीक जवाब देने में सफल हो भी गए तो छह-आठ महीने बाद उन्हें एक बड़ा किला लड़ाना है. जाहिर है कि परिस्थितियां अब आसान नहीं हैं, गुजरात के अनुभव और उसके बाद कई और चुनावों के नतीजे कांग्रेस को लगातार ऑक्सीजन दे रहे हैं, उसे संघर्ष में ला रहे हैं, ऐसे में मध्यप्रदेश में आने वाला चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है इसमें कोई दो राय नहीं है.
वीडियो: शिवराज सिंह बोले, यह चुनाव है, दंगल नहीं
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.