नई दिल्ली: बिहार के नए डीजीपी केएस द्विवेदी की नियुक्ति पर उठे विवाद पर राज्य सरकार ने गुरुवार को सफाई दी. गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुभानी ने दावा किया कि द्विवेदी की नियुक्ति किसी के दबाव में नहीं की गयी. हालांकि इस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने माना कि भागलपुर दंगे के दौरान के एस द्विवेदी पर आरोप लगे थे, लेकिन तीन जजों की कमेटी बनाई गई थी. जिसमे से आयोग के एक सदस्य ने अपने प्रतिवेदन में केएस द्विवेदी के एसपी के रूप में किये गए कार्यों की सराहना की थी.
जबकि दो सदस्यों ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी, लेकिन 20/12/1996 को पटना हाईकोर्ट ने इन अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए द्विवेदी के खिलाफ दो सदस्यों के प्रतिकूल टिप्पणी को खंडित करते हुए आदेश दिया था कि उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाए.
राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गई लेकिन उसे खारिज कर दिया. इस प्रकार उच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा. जिसके बाद द्विवेदी को 2000 से ही नियमित प्रोन्नति दी जा रही है. इसके बाद 2005 में आईजी और 2011 में एडीजी बनाये गए. इस तरह वरीयता के आधार पर द्विवेदी की डीजीपी के रूप में नियुक्ति पूर्णत नियमानुकूल है.
इससे पूर्व न केवल राजद के शिवानन्द तिवारी बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस नियुक्ति पर सवाल उठाये थे. मांझी का कहना था कि द्विवेदी की नियुक्ति के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में दहशत हैं. वहीं राजनीतिक गलियारों में यह अटकलें लगायी जा रही थी कि द्विवेदी की नियुक्ति में भाजपा का दबाव रहा हैं. प्रधान सचिव आमिर सुभानी का कहना हैं कि ये नियुक्ति एक सामान्य प्रक्रिया के तहत वरीयता के मद्देनज़र लिया गया हैं.