कोहिमा।
भारतीय जनता पार्टी ने नागालैंड में पिछले 15 वर्षों से सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के साथ गठबंधन तोड़ लिया। भाजपा आैर एनपीएफ 1998 से एक साथ चलते आ रहे थे आैर 18 जुलार्इ को 15 सालों से चला आ रहा ये साथ छूट गया। एनपीएफ से गठबंधन तोड़ने के बाद भाजपा ने नवगठित पार्टी एनडीपीपी से गठजोड़ कर लिया है। बता दें कि बीजेपी के साथ ही डीएएन में तीसरी सहयोगी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी गठबंधन से हाथ खींच लिया है। इससे 2003 में हुआ गठबंधन पूरी तरह से समाप्त हो गया है। यह गठबंधन एनडीए के तत्कालीन चेयरमैन जॉर्ज फर्नांडिस और पूर्व मुख्यमंत्री नेफियू रियो के नेतृत्व में स्थापित हुआ था। रियो अब बीजेपी की नई सहयोगी पार्टी एनडीपीपी के नेता हैं।
हालांकि एनपीएफ के साथ गठबंधन ताेड़ने की बड़ी वजह ये है कि भाजपा पूर्वोत्तर के राज्यों तें अपना जनाधार बढ़ा कर एक छत्र राज्य करना चाहती है। जिसके लिए उसे कुछ बड़ा करने जरूरत थी आैर भाजपा ये एनपीएफ के साथ रहकर नहीं कर सकती थी। अगर भाजपा, एनपीएफ के साथ रहती तो उसे समर्थन करके जेलियांग काे मुख्यमंत्री बनाना पड़ता।
राज्य में भाजपा की ये रणनीति केंद्रीय गृहराज्य मंत्री और नागालैंड में बीजेपी के पर्यवेक्षक किरण रिजिजू के बयान में ही झलकती है जो उन्होंने एनडीपीपी के साथ सीटों का समझौता करते समय दिया था। उन्होंने कहा था कि 'पहले बीजेपी यहां पर बड़ी ताकत नहीं थी। अब हमें सीटों पर समझौता करना है, इसलिए इस पुरानी प्रैक्टिस को छोड़ना होगा।'
हालाकिं अगर हम पीछे देखें तो भाजपा आैर एनपीएफ में दरार जुलार्इ 2017 में ही पड़ गर्इ थी। जब शुरहोजेली सरकार को राज्यपाल पीबी आचार्य ने बर्खास्त कर दिया और इसके कुछ घंटों बाद जेलियांग ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। बता दें कि शुरहोजेली सदन में बहुमत सिद्ध करने में नाकाम रहे आैर जेलियांग को सदन में 59 में से 47 विधायकों का समर्थन मिला। भाजपा के चार विधायकों से भी जेलियांग का समर्थन दिया था। जिसके बाद शुरहोजेली के नेतृत्व वाले धड़े ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया तो वहीं नेफियू रियो ने खुद को पार्टी से अलग करते हुए एनडीपीपी का गठन कर लिया।
गौरतलब है कि एनपीएफ के नेता आैर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नेफियू रियो के समर्थन से नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी का गठन अक्टूबर 2017 में किया गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिंगवांग कोंनयाक अध्यक्ष है। पार्टी के गठन के बाद 10 एनपीएफ के विधायकों ने पार्टी को छोड़ कर एनडीपीपी में शामिल हो गए। 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में अब भाजपा आैर एनडीपीपी एक साथ चुनाव लड़ेगे आैर चुनाव परिणामों की घोषणा तीन मार्च को होगी।