फटिकरॉय सीट पर 10 बार हुए चुनाव, 7 बार सीपीएम, 3 बार कांग्रेस जीती

- त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ दो दिन बचे है। राज्य की 59 विधानसभा सीटों के लिए 18 फरवरी को वोट पड़ेंगे।
अगरतला।
त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ दो दिन बचे है। राज्य की 59 विधानसभा सीटों के लिए 18 फरवरी को वोट पड़ेंगे। आज हम बात कर रहे हैं फटिकरॉय सीट की, जहां से कांग्रेस ने सिर्फ तीन बार जीत दर्ज की है। 1967, 1972 और 1988 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहां से जीती थी। सीपीएम 1993 से लगातार(2013 तक) यह सीट जीतती आ रही है। पहले यह सीट जनरल की हुआ करती थी। 2013 में इसे एससी के लिए रिजर्व किया गया था।

फटिकरॉय से सीपीएम ने इस बार तुनुबाला मालाकर को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में तुनुबाला ने कांग्रेस के जुगल मालाकर को 1,865 वोटों से हराया था। मालाकर को कुल 17, 899 जबकि जुगल को 16, 034 वोट मिले। भाजपा ने सुधांग्शु दास, कांग्रेस ने रखु दास पर दांव लगाया है। राजेश मालाकर बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। 1988 में कांग्रेस के सुनील चंद्र दास यहां से सबसे ज्यादा वोटों से जीते थे। उन्होंने सीपीएम के भुदेब को 7,989 वोटों से मात दी थी। सीपीएम के अनंता पाल ने सबसे कम वोटों से जीत दर्ज की थी। 1998 के विधानसभा चुनाव में अनंता ने कांग्रेस के सुजीत पॉल को सिर्फ 665 वोटों से हराया था।

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आर.आर.गुप्ता ने सीपीआई के आर.आर.कुमार को 1993 वोट से हराया था। गुप्ता को कुल 7,750 जबकि कुमार को 5,757 वोट मिले थे। 1972 के चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। कांग्रेस की राधिका नंदन गुप्ता ने सीपीएम के तरानी मोहन सिन्हा को 1,053 वोटों से हराया। गुप्ता को कुल 4,019 जबकि सिन्हा को 2,966 वोट मिले। 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदल लिया लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ। कांग्रेस चुनाव हार गई। सीपीएम के तरानी मोहन सिन्हा ने कांग्रेस के गोपेश रंजन देब को 2,692 वोटों से हरा दिया। सिन्हा को कुल 6,057 जबकि गोपश रंजन देब को 3,365 वोट मिले। 1983 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर राधिका रंजन गुप्ता को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वह हार गई। सीपीएम के तरानी मोहन सिन्हा ने गुप्ता को 1682 वोटों से मात दी।

सिंघा को कुल 7, 580 जबकि गुप्ता को 5,898 वोट मिले। 1988 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और सीपीएम से यह सीट छीन ली। कांग्रेस के सुनील चंद्र दास ने सीपीएम के भुदेब भट्टाचारजी को 7, 989 वोटों से हराया। दास को कुल 12, 288 जबकि भुदेब को 4,299 वोट मिले। 1993 में भूदेब ने बाजी पलट दी और कांग्रेस के सुनील चंद्र दास से बदला लेते हुए उन्हें 5,036 वोटों से हरा दिया। भुदेब को कुल 11, 742 जबकि सुनील चंद्र दास को 6,706 वोट मिले।

1998 के चुनाव में कांग्रेस और सीपीएम ने उम्मीदवार बदले। सीपीएम ने अनंता पाल को जबकि कांग्रेस ने सुजीत पॉल को चुनाव में उतारा। अनंता पाल ने सुजीत को सिर्फ 665 वोटों से हराया। अनंता पाल को कुल 9,342 जबकि सुजीत को 8,677 वोट मिले। 2003 में सीपीएम के बिजॉय रॉय ने कांग्रेस के सुजीत पॉल को 1, 237 वोटों से हराया। बिजॉय को कुल 11, 381 जबकि दास को 10,144 वोट मिले। 2008 में बिजॉय रॉय ने कांग्रेस के सुनील चंद्र दास को 2,313 वोटों से हराया। रॉय को कुल 14, 457 जबकि दास को 12, 144 वोट मिले।