अगरतला
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव-2018 के चुनावी दंगल में सत्तारूढ़ माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को मात देने के लिए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा त्रिपुरा में वामपंथी गढ़ को ढहाने में और कांग्रेस को जड़ से साफ़ करने की कवायद में जुटी है।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि पिछले 25 सालों से सत्ता संभाल रही माकपा को इस चुनाव में भाजपा से जोरदार टक्कर मिल रही है, लेकिन क्या ये चुनावी उठापटक त्रिपुरा में राजनीतिक समीकरण बदल पाएंगे ये तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
लेकिन ये सफर बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि त्रिपुरा में माकपा की जड़े राज्य में बेहद मजबूत है और इसका असर त्रिपुरा की कमालापुर सीट पर देखा जा सकता है इस सीट पर हमेशा से ही सीपीएम का दबदबा रहा है 1977 से 1998 तक त्रिपुरा की कमालापुर सीट पर बिमल सिंघा का राज चला उन्होंने अपने प्रतिद्वंदियों को इस सीट से करारी हार का स्वाद चखाया।
कमालापुर सीट से सीपीएम का नाता बेहद पुराना
कमालापुर सीट पर 1977 से 1998 तक कमालापुर सीट पर बिमल सिंघा ने राज किया इसके बाद 2003 में इस गद्दी को बिजॉय लक्ष्मी सिंघा ने संभाला और अपने खिलाफ खड़े कांग्रेस के उम्मीदवार मनोज कांति देब को भारी मतों से हराया लेकिन इसके बाद 2008 में मनोज कांति देब ने 11839 वोटों से बिजॉय लक्ष्मी को हराया लेकिन 2013 में एक बार फिर से बिजॉय ने 19204 वोटों की मिली जीत के बाद कमालापुर में वापसी की और सीपीएम की झोली में जीत डाल दी।
इस बार का मुकाबला
हालांकि इस बार मुकाबला फिर से सीपीएम बनाम बीजेपी ही है क्योंकि बिजॉय लक्ष्मी को एक बार हार का मुंह दिखा चुके मनोज कांति देब इस बार पूरे जोश और बीजेपी के साथ मैदान में हैं।