पटना: बिहार की राजनीति में पिछले चार दिन के भीतर जनता दल यूनाइटेड, यानी जेडीयू ने तीन घोषणाएं कीं. सबसे पहले, पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने जानकारी दी कि राज्य में अगले महीने एक लोकसभा सीट अररिया और दो विधानसभा सीटों जहानाबाद और भभुआ पर होने जा रहे उपचुनाव में पार्टी नहीं लड़ेगी. इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने कहा कि वह फिलहाल प्रचार करेंगे या नहीं, इस पर फैसला भी पार्टी की कोर कमेटी के लोग ही लेंगे, लेकिन सबसे अहम था उनका यह कहना - "गलतफहमी मत पालिए, हम सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, गठबंधन का नहीं..."
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को पत्रकारों से कहा कि हम सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, गठबंधन का नहीं. यही नहीं, नीतीश ने पत्रकारों को सलाह भी दी कि उन्हें किसी भ्रम का शिकार नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार सभी की सहमति से बनी है, लेकिन वह केवल सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. यह पूछे जाने पर कि गठबंधन के फैसले कौन लेता है, और उसका नेतृत्व किसके पास है, नीतीश कुमार ने कहा - सब कुछ सामूहिक है... नीतीश के इस जवाब से लोगों के कान खड़े हो गए, और उन्हीं की पार्टी के लोगों के साथ-साथ सहयोगी दलों के नेताओं ने भी इस द्विअर्थी वाक्य का भावार्थ समझने की कोशिशें शुरू कर दीं. यह सभी जानते हैं कि नीतीश भले ही इस पर कोई सफाई न दें, लेकिन उन्होंने बहुत कुछ कह डाला है.
नीतीश कुमार के इस जवाब के कई मायने हैं. सबसे अहम अर्थ यही है, जिसका असर भी तुरंत दिखने लगा कि फिलहाल नीतीश गठबंधन का नेता बनकर हमेशा सभी को खुश रखने की कोशिशों में अपना दिमाग और समय खर्च नहीं करना चाहते. नीतीश भी जानते हैं कि जिस वक्त से उन्होंने BJP के साथ सरकार बनाई है, तभी से RJD और कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से भी ज़्यादा दुःखी और नाराज़ BJP के जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा हैं. लेकिन अब नीतीश ने अपने इस एक बयान से फिलहाल उनकी मांगों को सुनने और सुलझाने की ज़िम्मेदारी से खुद को अलग कर लिया है. यही कारण है कि नीतीश के बयान के बाद बिहार BJP के वरिष्ठ नेता पार्टी कार्यालय में बैठे और फिलहाल 'जी का जंजाल' बन चुकी जहानाबाद सीट पर चर्चा की. दरअसल, RJD के मुंद्रिका सिंह यादव के निधन के बाद हो रहे उपचुनाव में जहानाबाद सीट से मांझी और कुशवाहा अपने-अपने उम्मीदवार को उतारना चाह रहे हैं. BJP कार्यालय में हुई बैठक के तुरंत बाद बिहार BJP के अध्यक्ष नित्यानंद राय खुद मांझी के घर भी गए.
लेकिन जो लोग नीतीश को जानते हैं, उनका कहना है कि वह राजनीति और सरकार, दोनों ही अपनी शर्तों पर चलाना चाहते हैं. दरअसल, नवंबर, 2005 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव के बाद जो कुछ भी हुआ है, वह उनकी इच्छानुसार ही हुआ है. चाहे वह मौजूदा प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार के चुनाव प्रचार से अलग रखना हो या चुनाव के बाद सरकार का एजेंडा तय करना हो, सब नीतीश कुमार की इच्छा के अनुसार ही होता रहा. लेकिन याद रखने वाली बात यह है कि उस समय BJP अटल-आडवाणी की पार्टी कही जाती थी, जो सहयोगियों को साथ लेकर चलने में विश्वास करती थी, लेकिन अब BJP के नेता मानते हैं कि मोदी-शाह की टीम पूर्ववर्तियों के ठीक विपरीत सहयोगियों से भी शह-मात का खेल खेलने से बाज़ नहीं आती.
इसका एक पक्ष और भी है. चूंकि BJP-JDU गठबंधन कार्यकाल के बीच बना है, इसलिए भले ही नीतीश का लक्ष्य सरकार चलाना है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इसका एक ही उद्देश्य होगा कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद भी वह प्रधानमंत्री बने रहें, और इसके लिए बिहार से पिछले आम चुनाव की तुलना में सीटें घटनी नहीं चाहिए, भले ही बढ़ें नहीं. सो, हो सकता है, अगले विधानसभा चुनाव से पहले तक नीतीश पर ही गठबंधन का ताज सजा रहे, लेकिन फिलहाल इसके लिए अगले लोकसभा चुनावों के परिणाम का इंतज़ार करना होगा.
नीतीश कुमार के गठबंधन के पचड़ों से दूर रहने की कोशिशों के पीछे अनुभव के आधार पर निकाला गया एक निष्कर्ष यह भी है कि नीतीश को उपेंद्र कुशवाहा के चले जाने से भी फर्क नहीं पड़ने वाला है, जबकि उनका मानना है कि जब तक केंद्र में BJP की सरकार है, तब तक मांझी कम से कम लालू प्रसाद यादव के साथ नहीं जाएंगे. उधर, अगर उनके बेटे संतोष मांझी का राजनीतिक एडजस्टमेंट हो गया, तो वह अपनी पार्टी का विलय BJP में ही कर सकते हैं. दूसरा, नीतीश यह भी मानते हैं कि मानते हैं कि जब तक रामविलास पासवान भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ हैं, तब तक बिहार में NDA उम्मीदवारों को जीत को लेकर कोई दुविधा या परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि जब पासवान NDA के खिलाफ लालू के साथ थे, तब भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में NDA की जीत हुई थी, और अब तो पासवान भी RJD के विरोध में हैं.
इसलिए साफ है कि राष्ट्रीय राजनीति की सभी महत्वकांक्षाओं को त्याग कर बिहार में BJP के साथ एक बार फिर सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार सरकार को अपने कार्यक्रमों के अनुसार अपनी शर्तों पर ही चलाएंगे. यह बात तो नीतीश कुमार के विरोधी भी मानते हैं कि अपने इस बयान से CM ने संदेश भेजा है कि जब वह लालू के सामने नहीं झुके, तो अब एक-एक विधायक वाले मांझी और कुशवाहा के दबाव में रहकर गठबंधन का नेता नहीं बनना चाहते.