त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस एक समय उभरती हुई ताकत थी लेकिन इस बार के
विधानसभा चुनाव में वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। त्रिपुरा
के विधानसभा चुनाव में इस बार मुख्य मुकाबला सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट
फ्रंट और भाजपा के बीच है। त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 6 दिन
बचे हैं। राज्य की 60 सीटों के लिए 18 फरवरी को मतदान होगा और 3 मार्च को
नतीजे घोषित होंगे।
तृणमूल
कांग्रेस ने इंडिजिनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्विप्रा(आईएनपीटी) और नेशनल
कांफ्रेंस ऑफ त्रिपुरा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है। त्रिपुरा में
टीएमसी ने 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। त्रिपुरा में टीएमसी के
इंचार्ज सब्यसाची दत्ता,जो पश्चिम बंगाल से विधायक हैं, के मुताबिक उन्हें
उम्मीद है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस एक ताकत के रूप में उभरेगी। जब
उनसे पूछा गया कि क्या वह आश्वस्त हैं कि गठबंधन सत्ता में आएगा तो दत्ता
ने कहा, देखते हैं क्या होगा।
बकौल दत्ता, हमारे पास भाजपा जैसा मनी पावर
नहीं है लेकिन हम कांटे की टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं। त्रिपुरा में
टीएमसी के एक नेता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, पार्टी राज्य
में अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए लड़ रही है। एक बार हम मुख्य
विपक्षी दल के रूप में उभरे थे लेकिन अब हमने दोबारा से शुरुआत की है।
हमारे पास चुनाव लडऩे के लिए न तो फंड है और न ही उम्मीदवार। तृणमूल
कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कुछ दिन पहले अपनी पार्टी, जिसने
त्रिपुरा में संगठन का निर्माण किया था, से कहा था कि फिर से शुरुआत करने
होगी। ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के पूर्व महासचिव मुकुल रॉय का नाम
लिए बिना मौजूदा स्थिति के लिए पार्टी के गद्दारों को जिम्मेदार ठहराया था।
पको बता दें कि मुकुल रॉय पिछले साल भाजपा में शामिल हुए थे। ममता ने कहा
था,त्रिपुरा में सही तरीके से चुनाव नहीं लडऩे की वजह फंड की कमी है। हमने
पहले भी त्रिपुरा में संगठनात्मक नेटवर्क स्थापित किया था लेकिन गद्दार के
कारण (मुकुल रॉय जो भाजपा में शामिल हो गए) हमें झटका लगा। 2011 में
पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के 34 साल के शासन को खत्म करने के बाद ममता बनर्जी
की नजरें त्रिपुरा पर थी क्योंकि वहां पर बंगाली भाषी लोगों की बड़ी तादाद
है। ममता ने राज्य में पार्टी के आधार के विस्तार की जिम्मेदारी मुकुल रॉय
को दी थी। 2016 में कांग्रेस के 6 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए
थे और पार्टी मुख्य विपक्षी दल बन गई थी। टीएमसी ने अपने आधार के विस्तार
की शुरुआत कर दी थी लेकिन खेल उस वक्त बदल गया जब भाजपा पिक्चर में आ गई।
तृणमूल कांग्रेस के 6 विधायक पिछले साल भाजपा में शामिल हो गए।
टीएमसी के
नेतृत्व का मानना है कि इन विधायकों के भाजपा में जाने के पीछे मुकुल रॉय
है। भाजपा विधायक सुदीप रॉय बर्मन का कहना है कि हम इसलिए भाजपा में शामिल
हुए क्योंकि टीएमसी ने सीपीएम और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। जब हमने
टीएमसी से हाथ मिलाया था तो सोचा था कि पार्टी सीपीएम से मुकाबले को लेकर
गंभीर है लेकिन सीपीएम और कांग्रेस की मदद करने के टीएमसी के फैसले ने हमें
निराश किया। तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिश की थी
लेकिन उसे तवज्जो नहीं मिली। कांग्रेस टीएमसी को सिर्फ 5 सीटें दे रही थी
जबकि पार्टी 30 सीटें मांग रही थी।
त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष बिराजीत
सिन्हा ने कहा, राज्य में तृणमूल कांग्रेस का कोई आधार नहीं है। वे 30
सीटें मांग रहे थे। क्या यह तार्किक मांग है? हमें तृणमूल कांग्रेस की
जरूरत नहीं है। सिन्हा ने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस को
कमजोर करने के लिए 2016 में पार्टी के 6 विधायकों को पार्टी में शामिल कर
लिया। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि सब्यसाची दत्ता ने कहा कि
कांग्रेस की तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं थी
क्योंकि उसने पार्टी को सिर्फ 5 सीटें ऑफर की थी। तृणमूल कांग्रेस के
गठबंधन में पार्टनर एनसीटी के स्टेट प्रेसिडेंट अनिमेष देबबर्मा ने कहा कि
उन्हें उम्मीद है कि चुनावों में गठबंधन का प्रभाव देखने को मिलेगा और
चुनाव बाद प्रमुख भूमिका निभाएगी। त्रिपुरा में टीएमसी को गैर महत्वपूर्ण
राजनीतिक ताकत करार देते हुए मुकुल रॉय ने कहा कि राज्य के लोग भाजपा को
चाहते हैं। साथ ही वे लेफ्ट के कुशासन का अंत चाहते हैं। त्रिपुरा के लोग
विकास की उस प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहते हैं जो भाजपा और प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने शुरु की है।