अगरतला।
त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में सभी की नजरें बिशालगढ़ सीट पर लगी हुई है। यहां इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा ने निताई चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने जयदुल हुसैन को प्रत्याशी बनाया है। सीपीएम ने फिर भानुलाल साहा पर दांव लगाया है, जो 2008 से यहां से विधायक हैं। अमरा बंगाली पार्टी ने परिमल सरकार को टिकट दिया है। इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। 6 बार यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार निर्वाचित हुए हैं जबकि सीपीएम के 4 बार। त्रिपुरा की 60 सीटों के लिए 18 फरवरी को मतदान होगा। 3 मार्च को नतीजे घोषित होंगे। आपको बता दें कि कांग्रेस के समीर रंजन बर्मन पांच बार इस सीट से विधायक रहे हैं। पिछले साल अप्रेल में कांग्रेस ने बर्मन को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। इस कारण कांग्रेस को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा है।
बर्मन ने अगरलता में रैली के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ मंच साझा किया था। इस कारण उन्हें पार्टी से बर्खास्त किया गया था। राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके समीर रंजन बर्मन 5 बार बिशालगढ़ से विधायक रह चुके हैं। समीर रंजन बर्मन 9 बार इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। बर्मन 1972 में चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे। बर्मन 1977 के चुनाव में कांग्रेस छोड़कर जेएनपी में चले गए। उन्होंने जेएनपी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। समीर रंजन बर्मन पिछले साल अगस्त में भाजपा में शामिल हुए सुदीप रॉय बर्मन के पिता हैं। सुदीप रॉय बर्मन 5 अन्य विधायकों के साथ तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। समीर रंजन बर्मन ने सीपएम को हराने के लिए बतौर निर्दलीय उम्मीदवार बिशालगढ़ से पर्चा भी भर दिया था लेकिन बेटे सुदीप के कहने पर उन्होंने नाम वापस ले लिया। पर्चा भरने के के बाद मीडिया से बातचीत में बर्मन ने कहा था कि सत्तारुढ़ सीपीएम को हराने के लिए मैं तालिबानी चरमपंथियों से भी हाथ मिलाने के लिए तैयार हूं। बर्मन फरवरी 1992 से 1993 तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे। वे तीन साल तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे हैं। वे 1993 से 1998 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं।
समीर रंजन बर्मन ने 1988 से लेकर 2003 तक लगातार बिशालगढ़ सीट से चुनाव जीता। बिशालगढ़ से सबसे कम वोटों से और सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले नेता समीर रंजन बर्मन ही रहे हैं। 1972 के चुनाव में बर्मन ने सिर्फ 139 वोटों से चुनाव जीता था। उन्होंने सीपीएम के बाबुल सेनगुप्ता को हराया था। बर्मन को कुल 2,777 वोट मिले थे जबकि सेनगुप्ता को 2,638। 1993 के विधानसभा चुनाव में बर्मन ने सीपीएम के भानुलाल साहा को 11,770 वोटों से हराया था। बर्मन को कुल 16,404 वोट मिले थे जबकि साहा को सिर्फ 4,634 मत पड़े थे। सीपीएम के भानुलाल साहा यहां से तीन बार विधायक रहे हैं। साहा ने कुल 6 बार चुनाव लड़ा। 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के यू.एल.सिंह ने आईएनडी के बी.एम.साहा को 1936 वोटों से हराया था। सिंह को कुल 8,072 वोट मिले थे जबकि साहा को 6,136। 1972 में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदल दिया और समीर रंजन बर्मन को मैदान में उतारा। बर्मन ने सीपीएम के बाबुल सेनगुप्ता को 139 वोटों से हरा दिया। 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां बाजी पलट गई।
बर्मन चुनाव हार गए। बर्मन ने जेएनपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। सीपीएम के गौतम प्रसाद दत्ता ने रंजन को 1,838 वोटों से हरा दिया। गौतम प्रसाद को 5,384 वोट मिले जबकि बर्मन को 3,546। 1983 के चुनाव में बर्मन फिर कांग्रेस में आ गए और उन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन वे फिर हार गए। इस बार सीपीएम के भानुलाल साहा ने उन्हें 440 वोटों से हराया। साहा को 7,340 वोट मिले जबकि बर्मन को 6,990 मत पड़े। 1988 के विधानसभा चुनाव में बर्मन ने वापसी की और उन्होंने सीपीएम के भानुलाल साहा को 1,882 वोटों से मात दी। बर्मन को 10, 068 वोट पड़े जबकि साहा को 8, 186 वोट मिले। 1993 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम ने उम्मीदवार बदल दिया लेकिन पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। बर्मन ने फिर जीत दर्ज की।
उन्होंने सीपीएम के मति लाल सरकार को 1,798 वोटों से हरा दिया। बर्मन को कुल 10, 876 वोट मिले जबकि सरकार को 9,078। 2003 के विधानसभा चुनाव में बर्मन ने फिर साहा को हराया। इस बार बर्मन ने 1,594 वोटों से जीत दर्ज की। बर्मन को कुल 12,414 वोट मिले जबकि साहा को 10, 820। 2008 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम के साहा ने वापसी की और बर्मन को 914 वोटों से हरा दिया। साहा को कुल 15, 457 वोट पड़े जबकि बर्मन को 14, 543। 2013 के विधानसभा चुनाव में भी साहा चुनाव जीते। उन्होंने बर्मन को इस बार 1724 वोटों से हराया।