नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वालों को राजनीतिक दल बनाने या दल का पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने वाली याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि उसके पास राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर आयोग ने कहा है वह पिछले करीब 20 वर्षों से केंद्र सरकार को पत्र लिखकर यह आग्रह करता रहा है कि उसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का भी अधिकार दिया जाए लेकिन अब तक उसे सफलता नहीं मिली है.
आयोग ने कहा है कि जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा-29 ए में उसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण करने का तो अधिकार दिया गया है लेकिन इस दल के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार नहीं दिया गया है.
आयोग ने कहा कि 1998 में पहली बार मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने तत्कालीन कानून मंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि आयोग को राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार मिलना चाहिए. आयोग का कहना था कि कई राजनीतिक दल ऐसे हैं जिन्होंने पंजीकरण तो करवा लिया है लेकिन कभी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया. इस तरह की पार्टियां सिर्फ कागजों पर है.
आयोग का कहना है कि इस तरह की पार्टी बनाने का मकसद आयकर अधिनियम का फायदा उठाने का भी हो सकता है. आयोग ने कहा कि फरवरी 2016 से दिसंबर, 2016 केबीच इस तरह के 255 राजनीतिक दलों को पंजीकृत किए गए गैरमान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों की सूची से बाहर कर दिया गया. हलफनामे में आयोग ने यह भी कहा कि वह इनर पार्टी डेमोक्रेसी की मांग का समर्थन करता रहा है.
हालांकि आयोग ने यह साफ किया कि विधायिका को कानून में संशोधन कर आयोग को इनर पार्टी डेमोक्रेसी के संबंध में दिशानिर्देश बनाने का अधिकार दिया जाए. मालूम हो कि फिलहाल आयोग को राजनीतिक दल को पंजीकृत करने का तो अधिकार है लेकिन उसका पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं है.
चुनाव आयोग ने यह जवाब भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर दिया है. याचिका में आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने वालों को राजनीतिक दल बनाने या दल का पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की गुहार की गई है.
VIDEO: AAP विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के मामले में HC ने EC से मांगा जवाब