कोहिमा।
नागालैंड में चुनाव बहिष्कार के बाद अब लोगों को बिना डर के मतदान करने का मौका मिलने जा रहा है। मतदान बहिष्कार की अपील कर चुकी एनएससीएन-आईएम ने अपने पुराने फैसले को बदलते हुए निर्णय लिया है कि वह विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने के लिए लोगों पर दबाव नहीं बनाएगा। चुनाव आयोग के लिए यह एक बड़ी राहत है। क्योंकि इससे लोग आसानी से चुनाव में भाग ले सकेंगे।
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड एक विद्रोही ग्रुप है जो कि नगालैंड के भारत से अलग होने की मांग करता रहा है। लेकिन काफी समय से नगा समझौते पर केंद्र व विद्रोही ग्रुप के साथ बात हो रही है जिसके अनुसार इस बात पर विचार चल रहा है कि वो भारत के साथ बने रहे और उनकी कुछ मांगों को मान लिया जाए।
इससे पहले मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टियों ने कहा था कि वो बहिष्कार को नहीं मानेंगी. इस पर NSCN-IM ने धमकी दी थी कि जो उनके फैसले को नहीं मानने के उसे घातक परिणाम होंगे।
उन्होंने कहा था कि हम नगा मुद्दे पर नगा लोगों के बुद्धिमत्तापूर्ण फैसले का स्वागत करते हैं और इसलिए चुनाव में भाग नहीं लेंगे। हम अंत तक अपने इस फैसले के साथ रहेंगे। हम किसी थोपे हुए चुनाव को स्वीकार नहीं करेंगे।
बता दें कि 29 जनवरी को कई आदिवासी समुदायों ने नगालैंड में होने वाले चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया था। नगालैंड ट्राइबल होहोस एंड सिविल ऑर्गैनाइजेशन (सीसीएनटीएचसीओ) ने 29 जनवरी को ये घोषणा की थी कि चुनाव के पहले इस मुद्दे का हल निकाल लिया जाना चाहिए।
सीसीएनटीएचसीओ ने सात नगा विद्रोही ग्रुप के साथ मिलकर 11 राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाकर एक संयुक्त समझौते पर हस्ताक्षर करवाया था कि वो 13वे विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करें। लेकिन जब राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपने नॉमिनेशन फाइल कर दिए तो बहिष्कार का फैसला कमज़ोर पड़ गया।
बाद में नगा मुद्दे के लिए जो बनी थी उसे भंग कर दिया गया। कमेटी के मुख्य सदस्यों ने स्वीकार किया कि लोगों को चुनाव से पहले समाधान में खास दिलचस्पी नहीं है खासकर उस स्थिति में जब उन्हें पता भी नहीं कि हल है क्या।
केंद्र पिछले 22 सालों से एनएससीएन-आईएम के साथ शांति वार्ता कर रही है। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में दोनों के बीच समझौता हुआ। बाद में केंद्र ने 6 और भी नगा विद्रोही ग्रुप को भी शामिल किया ताकि इस मामले का एक बेहतर हल निकाला जा सके।